Property Rights Update 2025: पति-पत्नी के बीच संपत्ति के मालिकाना हक को लेकर अक्सर विवाद होते हैं। खासकर तब, जब पति अपनी कमाई से कोई संपत्ति पत्नी के नाम पर खरीद लेता है। और बाद में पति और पत्नी मे किसी कारणवश झगड़ा होने से अलग रहने की स्तिथि में यह विवाद संपत्ति पर मालिकाना हक के रूप मे बदल जाता हैं, ऐसे में यह सवाल उठता है कि उस खरीदी गई संपत्ति का असली मालिक कौन होगा – पति या पत्नी? इसी जटिल कानूनी प्रश्न पर दिल्ली हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है, जो भविष्य में ऐसे मामलों के लिए मिसाल बनेगा।
दिल्ली हाईकोर्ट का स्पष्ट फैसला
इस मुकदमें में हाईकोर्ट ने कहा कि अगर कोई पति अपनी वैध और ज्ञात आय स्रोत से कोई संपत्ति खरीदता है और उसे पत्नी के नाम पर दर्ज करता है, तो वास्तविक मालिक पति को ही माना जाएगा।
हालांकि, इसके लिए पति को यह साबित करना होगा कि संपत्ति की खरीद के लिए उपयोग की गई राशि उसकी खुद की कमाई थी और वह पैसा उसके ज्ञात आय स्रोत से वैध तरीके से आया था
क्या यह बेनामी संपत्ति मानी जाएगी?
कानून के मुताबिक, यदि किसी व्यक्ति ने अपनी मेहनत की कमाई से अपनी पत्नी या करीबी पारिवारिक सदस्य के नाम पर संपत्ति खरीदी है और वह पैसा उसकी वैध आय से आया है, तो यह बेनामी संपत्ति नहीं मानी जाएगी। ऐसे मामलों में पत्नी संपत्ति पर स्वतंत्र अधिकार का दावा नहीं कर सकती, और कानूनी रूप से मालिकाना हक पति का ही होगा।
निचली अदालत का फैसला खारिज
इस केस में पहले निचली अदालत ने पति के दावे को खारिज कर दिया था। उसने यह कहा था कि बेनामी प्रोहिबिशन एक्ट 1988 के तहत पत्नी के नाम खरीदी गई संपत्तियां वापस नहीं ली जा सकतीं। लेकिन दिल्ली हाईकोर्ट ने इस फैसले को पलटते हुए इसे दोबारा सुनवाई के लिए भेज दिया।
याचिकाकर्ता के तर्क और न्यायालय की प्रतिक्रिया
हाईकोर्ट में याचिका दायर करने वाले पति ने दावा किया था कि उसने अपनी वैध कमाई और ज्ञात आय के स्रोत से दो संपत्तियां पत्नी के नाम खरीदी थीं। उसने अदालत से मांग की थी कि इन संपत्तियों का मालिकाना हक उसे दिलाया जाए क्योंकि पैसा उसी का लगा था। न्यायालय ने याचिकाकर्ता के तर्कों को उचित पाया और कहा कि यदि वह अपने दावे के समर्थन में पर्याप्त सबूत प्रस्तुत कर सकता है तो संपत्ति का वास्तविक मालिक वही माना जाएगा।
संशोधित बेनामी संपत्ति कानून की भूमिका
अदालत ने यह भी कहा कि बेनामी प्रोहिबिशन एक्ट 1988 में समय-समय पर महत्वपूर्ण संशोधन हुए हैं। निचली अदालत को इन्हीं संशोधित प्रावधानों के आधार पर फैसला देना चाहिए था। यह कानून अब पारिवारिक संपत्तियों को लेकर अधिक स्पष्टता प्रदान करता है।
फैसले का व्यापक कानूनी प्रभाव
इस ऐतिहासिक निर्णय से भविष्य में ऐसे मामलों में बड़ी राहत मिलेगी, खासकर जब:
- परिवार के किसी सदस्य के नाम पर संपत्ति खरीदी गई हो
- विवाद इस बात पर हो कि असली मालिक कौन है
यह फैसला न केवल पति-पत्नी के रिश्तों में बल्कि सभी पारिवारिक संपत्ति विवादों के लिए एक कानूनी मार्गदर्शक साबित होगा। और आमजन मे न्यायपालिका के प्रति विश्वास को और मजबूती प्रदान करता हैं|
Disclaimer:
यह लेख केवल सामान्य जानकारी के उद्देश्य से तैयार किया गया है। आपकी स्थिति अलग हो सकती है, इसलिए किसी भी कानूनी निर्णय से पहले एक योग्य वकील से सलाह अवश्य लें। यह लेख किसी भी प्रकार की कानूनी सलाह का विकल्प नहीं है।