प्रार्थना: ऐ मालिक तेरे बंदे हम
- ऐ मालिक तेरे बंदे हम,
ऐसे हो हमारे करम
नेकी पर चले और बदी से टले,
ताकी हँसते हुये निकले दम
ये अंधेरा घना छा रहा,
तेरा इन्सान घबरा रहा
हो रहा बेख़बर, कुछ ना आता नज़र,
सुख का सूरज छुपा जा रहा
है तेरी रोशनी में वो दम,
तो अमावस को कर दे पूनम
बड़ा कमजोर है आदमी,
अभी लाखों हैं इस में कमी
पर तू जो खड़ा, है दयालू बड़ा,
तेरी क्रिपा से धरती थमी
दिया तूने हमें जब जनम,
तू ही झेलेगा हम सब के ग़म
जब जुल्मों का हो सामना,
तब तू ही हमें थामना
वो बुराई करें, हम भलाई भरें,
नहीं बदले की हो कामना
बढ़ उठे प्यार का हर कदम,
और मिटे बैर का ये भरम
ऐ मालिक तेरे बंदे हम,
ऐसे हो हमारे करम
नेकी पर चले और बदी से टले,
ताकी हँसते हुये निकले दम
ऐ मालिक तेरे बंदे हम …
Rakesh Kumar Verma, Bhopal Mo.7999682930
ज्ञानेन्द्रियां विषयस्पर्श के बोध से हमारी आत्मा को जिस प्रकार सत्कार्यों की ओर प्रवृत्त कराती हैं, उसी प्रकार ईश्वर से एकत्व ‘..सर्वे भवन्तु सुखिन:’ का अनुभव प्रार्थना बन जाता है। क्योंकि जगत का संपूर्ण सौन्दर्य-वैभव ईश्वर से ही प्रस्फुटित हुआ है, जो विविध स्वरूपों में अभिव्यक्त है। यह भान एक रचनात्मक प्रेरणा के रूप में हमें परलोक से जोड़ता है। ईश्वर से सामीप्यता की यह अनुभूति हमें दु:खों से संघर्ष करने का संबल देती है।
मानवतावादी मनोविज्ञान पर आधारित फिल्म दो आंखें बारह हाथ (1957) के लिए फिल्मकार वी. शांताराम ने जब भरत व्यास को ऐसा गीत लिखने का आग्रह किया जिसे हर व्यक्ति गा सके। तब अगली सुबह गीत की पहली पंक्ति सुनाकर उन्होंने शांताराम को इस प्रकार मुग्ध कर दिया कि उन्होंने इसे अमरता का वरदान दे दिया। “ऐ मालिक तेरे बंदे हम” गीत की रचना ने इसे कालजयी बना दिया। आज भौगोलिक सीमाओं से परे यह गीत अनेक देशों की प्रार्थना बन चुका है। पंथ, संप्रदायों के बंधन से मुक्त यह गीत नैतिक जीवन और सकारात्मक विचारों के लिए जेलों-कारागारों में प्रार्थना के रूप में गाया जाता हैं। अंतरात्मा को झंकृत करता यह प्रार्थना हमें भावुक बना देता है।
‘ऐ मालिक तेरे बन्दे हम…..
हे ईश्वर! आत्मिक कल्याण के लिये वांछित मार्ग से ले चलिये। कुटिलताओं से मुक्त कर हमें संमार्ग की ओर प्रेरित करें। ताकि जीवन की यात्रा निर्बाध और तनावमुक्त संपन्न हो।
तामसिक प्रवृत्तियों के अत्याचार और शोषण से भयग्रस्त दीन आश्रितों को कुछ नहीं सूझता। हे आत्मारूपी ईश्वर, इस अमावस रूपी त्रासद जीवन को सुखरूपी पूर्णिमा में बदलनें का यत्न कर । यदि आपकी कृपा का संबल नहीं मिला तो हम शेष जीवन कैसे बिताएंगे?
अतृप्त इन्द्रियों के पोषण में उन्मत्त हमारी लाखों दुर्बलताओं को नियंत्रित करने वाले हे जन्मदाता, हमारा नैतिक उत्थान कर। हे सृष्टि के सर्जक, हे करुणानिधान हमारे दु:खों को अपनी रचना में समाहित (सुखरूपी संसाधन के ज्ञानबोध से) करने का यत्न करिये।
क्योंकि जगत के समस्त संसाधन, धन, फसल, स्त्री मानववृत्ति को तृप्त करने में पर्याप्त नहीं हैं इसलिए इस संबंध में जब अत्याचारों का हमें सामना करना पड़े, तो कुमतिमोचक अस्त्र से हमारा कल्याण करना। इस नियति को स्वीकार्य कर मन में लेश मात्र भी प्रतिशोध का भाव उत्पन्न न होने देना प्रभु। हमारी प्रत्येक धारणा निर्बैर, प्रेम, सद्भाव से युक्त हो, चाहे अन्य की प्रवृत्ति अहितकर ही क्यों न हो।