प्रेरक प्रसंग

                       *मोह*

एक बहुत ही प्रसिद्ध महात्मा थे। उनके पास रोज ही बड़ी संख्या में लोग उनसे मिलने आते थे। एक बार एक बहुत ही अमीर व्यापारी उनसे मिलने पहुंचा। व्यापारी ने सुन रखा था कि महात्मा बड़ी ही सरलता से रहते है। जब वह व्यापारी महात्मा के दरबार में पहुंचा तो उसने देखा कि कहने को तो वह महात्मा है, लेकिन वे जिस आसन पर बैठे है, वह तो सोने का बना है, चारों ओर सुगंध है, जरीदार पर्दे टंगे है, सेवक है जो महात्माजी की सेवा में लगे है और आश्रम में समस्त सुख सुविधाओं का अंबार लगा है।

व्यापारी यह देखकर भौंचक्का रह गया कि हर तरफ विलास और वैभव का साम्राज्य है। ये कैसे महात्मा है? महात्मा उसके बारे में कुछ कहते, इसके पहले ही व्यापारी ने कहा, “महात्माजी आपकी ख्याति सुनकर आपके दर्शन करने आया था, लेकिन यहाँ देखता हूँ, आप तो भौतिक सपंदा के बीच मजे से रह रहे हैं लेकिन आप में साधु के कोई गुण नजर नही आ रहे है।

      महात्मा ने व्यापारी से कहा, “व्यापारी… तुम्हें ऐतराज है तो मैं इसी पल यह सब वैभव छोड़कर तुम्हारे साथ चल देता हूँ।

     व्यापारी ने कहा, “हे महात्मा, क्या आप सच मे इस विलास पूर्ण जीवन को छोड़ पाएंगे?“ महात्माजी कुछ न बोले और उस व्यापारी के साथ चल दिए और जाते-जाते अपने सेवको से कहा कि यह जो कुछ भी है सभी सुख सुविधा की वस्तुओं को  गरीबो में बाँट दें।

     दोनो कुछ ही दूर चले होंगे कि अचानक व्यापारी रूका और पीछे मुड़ा, कुछ सोचने लगा। महात्मा ने पूछा, “क्या हुआ रूक क्यों गए?“ व्यापारी ने कहा, “महात्मा जी, मैं आपके दरबार में अपनी चप्पले भूल आया हूँ। मैं  जाकर उन्हे ले आता हूँ, उसे लेना जरूरी है।”इतनी दूर नंगे पैर मै नहीं चल पाऊंगा।

      महात्माजी हंसते हुए बोले, “बस यही फर्क है तुममें और मुझमें। मैं सभी भौतिक सुविधाओं का उपयोग करते हुए भी उनमें बंधता नहीं,मेरे लिए संसार के समस्त पदार्थ शून्य है वे मेरे बन्धन का कारण कदापि नही बन सकते।यही मेरे महात्मा होने का प्रमाण है, इसीलिए जब चाहूँ तब उन्हें छोड़ सकता हूँ और तुम जैसे साधारण मनुष्य इतने अमीर होकर भी चप्पलों के बंधन से भी मुक्त नहीं हो। तो फिर इस संसार सागर के रिश्ते,नाते,धन संपदा से कैसे मुक्त हो पाओगे। आओ मेरे साथ सांसारिक विरह का अभ्यास करों।।  इतना कहते हुए महात्माजी फिर से अपने दरबार की ओर जानें लगे और वह व्यापारी उन्हें जाता हुआ देखता रहा क्योंकि महात्मा उसे जीवन का सबसे अमूल्य रहस्य बता चुके थे।

                 *👉शिक्षा*

इस छोटी सी कहानी का सारांश ये है कि चीजों का उपयोग करना, लेकिन उनके मोह में न पड़ना, यही जीवन का अन्तिम उद्देश्य होना चाहिए क्योंकि मोह ही दु:खों का कारण है और जिसे चीजों का मोह नहीं, वह उनके बंधन में भी नहीं पड़ता और जो बंधन में नही पड़ता, वो हमेंशा मुक्त ही रहता है ।

सदैब प्रसन्न रहिये- जो प्राप्त है, पर्याप्त है।
जिसका मन मस्त है- उसके पास समस्त है।।

By Ns Malawat

Heelo I am Narayan Singh Malawat From Jawatra Dist Udaipur State Rajasthan. I am A Govt. Teacher.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!